Monday, June 1, 2020

भरोसा अपनी परवरिश पर

संतान का मार्गदर्शक बने, मार्गभक्षक नही

लुधियाना: 23 मई, 2020:: (*रुबिता अरोड़ा)::
लेखिका : रुबिता अरोड़ा 
मैं स्कूल से छुट्टी लेकर घर आई। सोचा कुछ देर आराम करूँगी तभी फोन की घंटी बजी। फोन मेरी पुरानी सहेली ज्योति का था। मुझसे मिलना चाहती थी। मैंने उसे शाम को घर आने को कहा। शाम ठीक पाँच बजे ज्योति अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ मेरे घर आई। दोनों बच्चे इतने प्यारे थे कि उनसे नजर ही नहीं हट रही थी। मैंने बच्चों से बात शुरू की। बड़ा बेटा रियान पाँचवी मे व छोटी बेटी सुनैना तीसरी मे पढती है। कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद ज्योति ने अपनी परेशानी मेरे साथ शेयर की। उसका मानना था कि उसके बच्चे पढाई मे बिलकुल रूचि नहीं ले रहे। बहुत कोशिश करने के बाद भी परिक्षा मे अच्छे अन्क नहीं लाते। शायद उनके दिमाग ही कमजोर है। उसने कहा कि वह उनके भविष्य को लेकर बहुत परेशान है। एक ही झटके मे ज्योति ने इतनी सारी बातें बोल तो दी लेकिन मैं यह सब सुनकर बहुत आहत हुई। वो दो छोटे छोटे बच्चे जिनके साथ बचपन भी अभी अठखेलियाँ करता नहीं थका उनके लिए इतना सब कुछ कह दिया ज्योति ने। क्या परिक्षा मे कम अंक आने से यह निष्कर्ष निकालना उचित है कि बच्चों के पास दिमाग कम है या ये बच्चे भविष्य मे कुछ नहीं कर सकते।  क्या तीन घंटे की परीक्षा मे आने वाले अंक किसी बच्चे की प्रतिभा को देखने का मापदंड हो सकते है। अरे बालमन तो कच्ची गीली मिट्टी की तरह होता है जिसे थोड़ी सी मेहनत करके मनचाहा आकार दिया जा सकता है। एक पौधे को अगर सही पोषण मिलेगा तो वह समय के साथ साथ एक दिन मजबूत पेड़ बनेगा। लेकिन अगर किसी पौधे को पोषण देने की बजाय कमजोर मानकर अनदेखा किया जाए तो एक दिन जरूर मुरझा जाएगा। लगातार प्रयास करते रहने से तो एक दिन असंभव भी संभव हो जाता है, फिर क्या हम बच्चों पर लगातार मेहनत नहीं कर सकते। ये सच है कि जिस प्रकार हाथों की पाँचो उगलियाँ एक समान नहीं होतीं ठीक उसी प्रकार हर बच्चे के सीखने का ढंग, उसकी ऊर्जा शक्ति भी अलग अलग हो सकती है। जरूरत है बस अपने बच्चो को थोड़ा समझने की,उन्हे वक्त देने की,उनके अन्दर छुपी प्रतिभा को बाहर निकालने की,फिर यही बच्चे अपना भविष्य खुद बनाते है। इसके इलावा यह भी जरूरी नहीं कि हर बच्चा अच्छा पढ लिख कर ही अपना भविष्य बना सकता है।हमारे सामने ऐसे सैकड़ों उदाहरण है, जिन्होंने कम पढे लिखे होने के बावजूद अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। अतः ज्योति जैसे माँ बाप से मै यही कह सकती हूँ कि अपने बच्चों पर भरोसा रखिए, आपको उनका मार्गदर्शक बनना है, मार्गभक्षक नही। सबसे बडी बात हमारे बच्चे हमारा ही अक्स है, सो भरोसा रखिए अपने आप पर,अपनी परवरिश पर।--*रुबिता अरोड़ा 
*रुबिता अरोड़ा व्यवसायिक तौर पर शिक्षिका हैं। 

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