Thursday, July 21, 2022

कठिन अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति है रीतू कलसी

नई काव्य रचना भी यही बताती है 


सोशल मीडिया: 21 जुलाई 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कितनी कठिन रही होगी ऐसी अनुभूति! 

कितनी कठिन रही होगी ऐसी कल्पना भी!

कितनी सहजता से कर दी अभिव्यक्ति!

कितनी शानदार है रीतू कलसी की यह काव्य रचना भी--!

आप ने सुना होगा वह लोकप्रिय गीत--

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे--जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे-संग संग तुम भी गुनगुनाओगे!

वो गीत भी सुना होगा--गर तुम भुला न दोगे

सपने ये सच ही होंगे

हम तुम जुदा न होगे

हम तुम जुदा न होगे 

ऐसे बहुत से गीत हैं--बहुत सी कहानियां हैं लेकिन कितने लोग याद रख पते हैं जब बिछड़ने वाला बिछड़ ही जाता है। हकीकत यही है कि जिसके बिना एक कदम तक चलना नामुमकिन लगता था हम उसके बिना भी फिर से जीना सीख ही लेते हैं। बेवफाई कहो या ज़िंदगी की मजबूरियां कि याद रखने में सहायता देने वाली सभी निशानियां मिल कर भी उन यादों को भूलने से रोक नहीं पातीं। हम सभी धीरे धीरे सभी को भूल जाते हैं। हमारे स्वार्थ हमें यही तो सिखाते हैं। ऐसे में रीतू ने कुछ ज़्यादाही सच्ची बात कह दी है। 

वैसे सत्य भी यही है--जीवन भी यही है--लेकिन स्वीकार करना आसान तो नहीं होता। हम भ्रम में जीने वाले लोग। अंधेरे में जीने वाले लोग। घर के अंदर और बाहर भी अपनी ज़रूरत के मुताबिक ही रौशनी का प्रबंध करते है। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचते के हमारे अंतर्मन में भी हकीकत की रौशनी आ जाए। स्वयं को भुलाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलते हैं। कभी दारो--कभी सिनेमा--कभी नावल--कभी कविता---फिर भी स्वयं को भूल नहीं पाते तो कई बार नींद की गोली का भी सहारा--! बहुत डरते हैं हम अंतर्मन में रुष नि होने से। बहुत डरते हैं हम स्वयं के साक्षताकार से। अंतर्मन के आईने में झाँकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हम लोग। जब अंतर्मन में किसी न किसी तरह ऐसी रौशनी आ ही  जाती है तभी सम्भव हो पाता है ऐसी रचना लिख पाना। ऐसी सफल रचना के लिए रीतू को हार्दिक बधाई। आप भी इस रचना को पढ़ सकते हैं लेकिन खतरा है यह आप का साक्षताकार कहीं आप से ही न करवा दे..! हिम्मत जुटा सकते हैं तो य्रुर पढिए इस धंदर कविता को।   --रेक्टर कथूरिया 

अब जिस कविता की बात की ज़रा उसे भी पढ़ लीजिए  


जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

भूल जाना उसी वक्त

बिल्कुल भी समय बरबाद मत करना

अपने दिमाग को कष्ट मत देना

मत सोचना कितना समय गुजारा मेरे साथ

हो सकता है पल भर के लिए भर आए आंखें

फिर भी जानती हूं किसी और के साथ होने से

याद भी न आयेंगे साथ गुजारे लम्हें

यही जिंदगी है जीवन है किसी के साथ कोई नही जाता

तो इसीलिए तुम ऐसा ही करना

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

सब झूठ जला देना मिटा देना 

कभी एक साथ रहने के वादों से खुद ही छुटकारा मिल जाएगा 

वादा खिलाफी के झमेलों से बचा लेगी मौत की खबर तुम्हे 

बस फिर भी 

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

तो चले जाना उसी समय बरसात में नहाने 

सब कुछ धुल जाएगा मन से तन से 

कहीं खुशबू बचाए न रखना अपने पास

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे 

मिटा देना नामोनिशान हर जगह से, हर जगह से

   ---रीतू कलसी

No comments:

Post a Comment