Saturday, September 11, 2021

मनोज धीमान ने लिखी एक और हिंदी फिक्शन किताब

'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) बाजार में भी चर्चा में भी  

पुस्तक समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को करती है उजागर

लुधियाना: 11 सितंबर 2021: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::

आज के युग की पत्रकारिता आसान नहीं होती। लगातार इसका अभ्यास करते करते निष्ठुरता सी आने लगती है। घटनाओं की खबर बनाते वक़्त स्पेस और टाईम को देखते हुए उसकी बेरहमी से कांटछांट करनी पड़ती है। सामूहिक हत्याकांड की खबर आ जाए तो आंसू बहाने से पहले खबर कवर करनी होती है। इसके बावजूद हमारे पुराने मित्र मनोज धीमान ने अपनी संवेदना बचाए रखी। उसे मरने नहीं दिया। अपनी मासूमियत भी बचाए रखी जिसका बचना आज के युग में असम्भव सा ही हो गया है। मनोज की जीवन शैली से ही निकली है मनोज की चौथी पुस्तक। फ़िलहाल पढ़िए पुस्तक के आने की खबर बाकी बात फिर कभी करते हैं मनोज धीमान पर भी और मनोज जी की साहित्यिक रचना पर भी।  --रेक्टर कथूरिया 


पंजाब में पिछले तीन दशकों से अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार मनोज धीमान ने
एक और हिंदी फिक्शन किताब 'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) लिखी है, जिसका औपचारिक रूप अभी विमोचन नहीं हुआ है। लेकिन, यह किताब बाजार में आ गई है और पाठकों के हाथ में पहुंचते ही यह चर्चा का विषय बन गई है।

इस लघुकथा संग्रह में धीमान ने लगभग सभी विषयों जैसे राजनीति, धर्म, आर्थिक समस्या, सामाजिक विषमता, प्रेम, खराब संबंध और मीडिया पर अपनी कलम चलाई है। उन्होंने मानव मन में उत्पन्न हुई निराशा, दहशत, भय, त्रासदी को मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया है। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार पांडे ने कहा, "जिस तरह ये सभी विषय एक-दूसरे से संबंधित हैं, उसी तरह लघुकथाएं एक के बाद एक समस्याओं को व्यक्त करती रहती हैं।" 

लघु कथाओं के बारे में बोलते हुए डॉ पांडे ने कहा कि प्रत्येक कहानी अपने आप में पूर्ण है। उन्होंने कहा कि लघु कथाएँ समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को उजागर करती हैं। उन्होंने कहा कि लाखों प्रयासों के बावजूद भ्रष्टाचार सामाजिक नीति का हिस्सा बना हुआ है। जिन पर भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे इसे फलने-फूलने का धंधा कर रहे हैं। लघुकथा 'सोने की मुर्गी' में लेखक ने एक व्यापारी की कहानी के बहाने पुलिस व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। कैसे एक पुलिस केस में व्यापारी को फंसाया जाता है और उसका फायदा उठाया जाता है। इसी तरह लेखक ने लघुकथा 'नया धंधा' में पथराव की घटनाओं का जिक्र किया है। यह लघुकथा एक बेरोजगार युवक के भाग्य के बारे में बताती है। लघुकथा 'राजा और प्रजा' में राजा स्वयं भगवान बन जाता है। यदि राजा कोई नेक कार्य करे तो प्रजा उसे भूल जाती है। अब क्योंकि हर राजा चाहता है कि जनता उसके 'दरबार' में उसकी प्रशंसा करने के इरादे से उपस्थित हो, तो भारतीय राजनेताओं में उनके द्वारा किए गए नेक कामों को गलत कामों में बदलने की कला है। बाढ़ से बचाव के लिए बनाए गए मजबूत बांध को कमजोर करने के लिए राजा ने ऐसा किया।

डॉ पांडे ने कहा, "इस तरह, हर छोटी कहानी सच्चाई और आज की वास्तविकता के बहुत करीब है", "लेखक अपने समय की कहानियों को खुली आंखों से व्यक्त करता है।"

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' के लेखन की शुरुआत कैसे हुई? इस सवाल का जवाब देते हुए धीमान ने कहा कि साल 2020 में कोरोना काल में वह व्हाट्सएप पर प्रसिद्ध हिंदी लेखकों के समूह "पाठक मंच" से जुड़े। "पाठक मंच" में कुछ लघु कथाएँ पोस्ट करने पर पाठकों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली, जिससे लेखन की निरंतरता बनी रही। इस तरह इन लघुकथाओं ने आखिरकार एक किताब का रूप ले लिया।

धीमान ने इस पुस्तक को प्रसिद्ध कवि, नाटककार और आलोचक डॉ. नरेंद्र मोहन को समर्पित किया है। उन्होंने  कहा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने न केवल उन्हें लघु कथाओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें अपने प्रकाशक - अकादमिक प्रकाशन, दिल्ली से बात करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने कहा, "मुझे जीवन भर पछताना पड़ेगा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने किताब प्रकाशित होने से पहले ही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। नहीं तो आज अगर वह जिंदा होते तो किताब प्रकाशित होने के पश्चात जश्न का माहौल कुछ और होता।"

हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष व विख्यात लेखक कमलेश भारतीय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "लघुकथाएं रोजमर्रा की घटनाओं या जीवन की स्थितियों से निकलती हैं। रचनाएं जमीन से जुड़ी हुई हैं। समाचार पत्रों की सुर्खियां, राजनीति में कोई भी मोड़ या हमारे चारों ओर का जीवन लेखक की लघु कथाओं की दुनिया है।"

पंजाब के जाने-माने हिंदी उपन्यासकार व पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि हिंदी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित डॉ. अजय शर्मा ने कहा, "लघु कथाएँ एक पूरी कहानी कहती हैं। ऐसी तकनीक बहुत कम लघु कथाकारों में देखी जाती है।"  अंजू खरबंदा, संचालिका, लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल (दिल्ली शाखा) ने कहा, "लघुकथा पढ़ते समय पाठक भी उन लघु कथाओं के साथ चलने लगता है। लघु कथाएँ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव हैं, जो सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती हैं।" दोआबा साहित्य एवं कला अकादमी, फगवाड़ा (पंजाब) के अध्यक्ष डॉ. जवाहर धीर ने कहा, "लघुकथाएं बहुत कम शब्दों में एक बड़ा संदेश देने में सक्षम हैं।"

एकैडमिक पब्लिकेशन, दिल्ली के राजेश कुमार ने कहा कि पुस्तक में आज के जीवन और घटनाओं से ओत-प्रोत लघु कथाएँ हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य में एक विशेष स्थान बनाएगी। उन्होंने कहा कि किताब जल्द ही अमेज़न पर उपलब्ध होगी।

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' में कुल 164 पृष्ठ हैं और इसमें 120 लघु कथाएँ हैं।

यहां बताया जाता है कि मनोज धीमान ने इससे पहले तीन हिंदी पुस्तकें लिखी हैं। ये पुस्तकें थीं: 'लेट नाइट पार्टी' (कहानी संग्रह), 'बारिश की बूंदे' (कविता संग्रह) और 'शुन्य की ओर' (उपन्यास)। 'लेट नाइट पार्टी' पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। अंग्रेजी अनुवाद प्रोफेसर शाहीना खान द्वारा किया गया था।

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